जिसपे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता | मेरा सीना वो: रास्ता होता / jispe aaqa ka naqsh-e-pa hota | mera seena woh raasta hota | By Saif Raza Kanpuri

खाते होते मेरे हुज़ूर ख़जूर
और गुटलियाँ मै समेट ता होता

जिसपे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता,
मेरा सीना वो: रास्ता होता.

जिसपे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता,
मेरा सीना वो: रास्ता होता.

आ रहे होते लेट ने को हुज़ूर
मैं चटाई बिछा रहा होता

मुँह धुला ता मैं सूब्ह-ए-दम उनका
और शाम को पाऊं दाब्ता होता

पैड़ को देखता मैं चलते हुए
जब इशारा हुज़ूर का होता

मुस्तफा मुस्कुरा रहे होते
चांद क़दमों को चूमता होता

न’अत हस्सान पड़ रहे होते
मेरे होठों पे मरहबा होता

मुझसे कहते वो: मेरी न’अत पड़ो
काश ऐसा कभी हुआ होता

मेरी आँखों पे नाज़ करते मलक
जब मैं आक़ा को देखता होता

मेरे सीने पे हाथ रख्ते वो:
जब मेरा दिल तड़प रहा होता

उस घड़ी मौत मुझको आजाती
वक़्त जब भी जूदाई का होता

काश इमामत मेरे नबी करते
जब जनाज़ा मेरा पड़ा होता

उनकी मिलाद है वजह वरना
कोई पैदा नही हुआ होता

जिसपे आक़ा का नक़्श-ए-पा होता,
मेरा सीना वो: रास्ता होता.

उनको केहता कभी न अपनी तरह
आइना तू जो देख ता होता

नात-ख्वां:
हज़रत सैफ रज़ा कानपुरी

दिल अपने बिछा देंगे सरकार के क़दमों में / Dil apne bichha denge Sarkaar ke kadmon mein | shoaib raza Bareilly


jispe aaqa ka naqsh-e-pa hota mera seena woh raasta hota | comming